' साल गुजरता
मै भी बढ़ता,
सत्रह का हो जाउंगा।
कहा कौन सा
काम करूँगा,
क्या धंधा अपनाऊंगा ?'
भैया ने बातो बातो में बचपन की याद ताजा करा दी।
लींगलींग, नजानु और छोटे इवान की कहानिया मस्तिस्क में अब एक धुंधली तस्वीर की तरह है।
कुछ चेहरे याद है, कुछ वक्त की ओंस में खो गए।
इतना याद है की रूसी कहानियों में लोग पौ फटते ही काम पर निकल जाते थे और लींगलींग जब जोर जोर से दरवाजे पर दस्तक देता तो दरवाजा नही खोला जाता पर जब प्यार से खटखटाता तब उसकी दादी अम्मा दरवाजा खोल देती।
जी करता है सारे करेक्टर्स को खोजू , सारी कहानिया फ़िर से पढ़ डालू।
कल घर जा रहा हू , पापा की लाइब्रेरी में लींगलींग और नजानु को खोजने।
यादो को हम संजो कर रखते है। शायद इसलिए क्योकी वक़्त के साथ हम सभी बदल जाते है, पर यादे नही.
3/9/09
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10 comments:
woh bachpan ki yaadein
itne bure bhi nahi the woh din :)
lekin tab bade hone ki jaldi thi
ha hahahaa !! ;)
after reading this i visualized myself standing with hands full of gems and i can see more of them lying around...all of them are precious and glittery.
As i bend down to pick more, i find some of them slipping out of my hands... and this happens over again as i keep hogging for more.
:))..i can veryw ell recall all those short stories...papa ne bahot baar aise kitabein dilayin hain....and i have the full stock at home!!! :P
I thnk i am also gonna brush all dust from them to have a glimpse of those story days.... :)..anu
हंसी-ख़ुशी के वो लमहे हज़ार बचपन के
ए काश लौटते दिन एक बार बचपन के
नहीं दिमाग न थे होशियार बचपन के
तभी तो दिन थे बड़े खुशगवार बचपन के
बड़े हुए तो कई लोग मिल गए लेकिन
बिछड़ चुके हैं सभी दोस्त-यार बचपन के
जो जिस्म को नही दिल को सुकून देते थे
बहुत अजीब थे वो रोज़गार बचपन के
सुबह लड़े तो शाम फिर से साथ खेल लिए
कभी रहे नहीं मन में गुबार बचपन के
सभी को चुपके से हर राज़ बता देते थे
सभी तो हो गए थे राज़दार बचपन के
ढले जो शाम तो गलियों में खेलने निकलें
बड़े हसीन थे वो इंतज़ार बचपन के
बड़ों पे ज़िद रही छोटों पे इक रुआब रहा
कहाँ बचे हैं अब वो इख्तियार बचपन के
ज़हन में कौंध के होंठों पे बिखर जाते हैं
वो वाकयात हैं जो बेशुमार बचपन के
-चिराग जैन
घुमक्कड़ भाई!
किसी रोज़ घर भी रहा करो…
हिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है... होली की शुभकामनाएं.
Ghummakaron ko to yaadon ka hi sahara hota hai. Swagat.
सुन्दर! स्वागत! लिखते रहें!
wah! bhai wah! narayan narayan
@voice
tab bade hone ki jaldi thi, aur ab bachpan ke din ko waapas laane ki tamanna hai.
@samyak
:) tumhaare saare gems mummy rakhi huyi hai..aur wo puraane russian note jispe blue ink gir gaya tha, wo bhi.
@Anu
To aapne dhul jhaada? kya kya mila?Koi achhi baankelal ki comics
mile to dena..ab ke comics ke print bhi waisa kaha.. sab nakli sa lagta hai.
@ Chirag
waah..aap to bahut sahi likhte hai.
Aapki nasihat maine maan li.. is weekend ghar pe hi rahunga aur yaadon ko blog ka roop dunga.
next weekend konark jaane ka plan hai. :)
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