10/19/07

वियेना से एक वादा था


११ कि सुबह हमारी train वियेना पहुंची .
वियेना कि गलियो से मै वाकिफ़ था. बिते दिसम्बर ,इसी शहर मे मैने कुछ शर्द दिन गुजारी थी. रेलवे स्टेशन से बाहर कि तरफ़ मैने झाकं कर देखा,वही नजारा था. मेरी नजरे वियेना कि सडको से कह रही थी : “मै आ गया. तुमसे मिलने.दुबारा.”


वियेना मे टमटम !
यही तो है वियेना कि खासियत .यूरोप मे कही कही ही आपको टमटम देखने को मिलेगा. रोम मे Rathaus के पास और वियेना मे stephensplatz और parliament के पास . ऐसे टमटम आज भी हमारे देश, इंडिया के गांवो मे चलते है.

यूपी –बिहार मे टमटम को ’एका’ कहा जाता है और छोटे रेलवे स्टेशन के बाहर अक्सर देखा जा सकता है.
कई गांव रेलवे स्टेशन से १५-२० किलोमिटर दूर होते है, जहा जाने के लिए एका के अलावा और कोई साधन नही होता है.
यूरोप के टमटम और हमारे गांव के एका मे फ़र्क इतना हि होत है कि यूरोप के टमटम चालक सूट-बूट मे होते है और हमारे यहा एका चलाने बाले, सूट-बूट तो दूर , दॊ वक्त कि रोटी के लिए तरसते है.

Austrian Parliament के आगे ठिक ४ बजे ये फ़ोटो लि हमने (zoom कर के देखिये, राजदीप के wrist watch मे time साफ़ दिख रहा है ) India मे उस समय ७:३० बज रहा होगा. तब मम्मी डिनर कि तैयारी करती होंगी और पापा फ़ोन पे किसी से बतियते होंगे .

यूरोप भ्रमण का विचार

एक दिन अचानक पता चला कि कुछ दिनो मे मेरा स्टे परमिट (permesso di sogourno) expire होने वाला है..
और renew करने मे ५-६ महिने लग जाएंगे.
जब तक नया स्टे परमिट नही आ जाता, ईटली से बाहर आप नही निकल सकते.
यूरोट्रिप मारने का पूरा प्लान धरा का धरा रह जाता अगर उस समय हम थोडी सी भी सुस्ती दिखाते तो..
जल्दी से यूरोप के बडे शहरो के बारे मे जानकारी प्राप्त किये और decide ये हुआ कि २ week मे पूरा यूरोप घुमना
है.. हर शहर मे सिर्फ़ एक दिन.
उदीने – वियेना- फ़ुसेन – मुनीख – बर्लिन- स्टाकहोम – ओसलो – कोपेनहैगन – एम्स्टरडैम – ब्रसेल्स – पेरिस – मार्साइल – बार्सिलोना – निस – उदीने

१० अगस्त कि रात जब हम और राजदीप उदीने से निकले थे तो मन मे एक शंका भी थी.
Non-stop trip का ये प्लान कितना सफ़ल होगा, इसका हमे अंदाजा नही था.
हमने सोच रखा था कि सफ़र के दौरान कही होटल या होस्टल मे रुकना नही है और यथासम्भव रात मे ही ट्रेन से सफ़र करना है .
रात के एक बजे, वियेना जाने वाली train उदीने स्टेशन पर आ गई और हम दोनो उत्साह के साथ सवार हुए.
Train चल पडी और हमने उदीने को अलविदा किया. हम दोनो उम्मीद और उत्साह से सरोबर थे.
राजदीप की आखें चमक रही थी.