11/24/07

यूरोट्रिप २००७ !



देखने के बाद प्लीज़ rate कर दिजिएगा – Art या Fart ? :D

मिलेनियम टावर - वियेना





इतनी शिद्द्त से तुझे पाने कि कोशिश कि है (आसमान को छुने कि चाहत)
कि जर्रे जर्रे ने मुझे तुझसे मिलाने कि साजिश कि है.

फ़ुसेन – डिजनीलैंड वाला कैशल




I am sure कि ये कैशल आपको जाना पहचाना सा लग रहा होगा. Fairy tales कि किताबो मे आपने जरुर देखा होगा.
ये वही कैशल है जिससे प्रेरित होके डिजनीलैंड वाला कैशल बनाया गया. दक्षिण जरमनी के एक छोटे से शहर फ़ुसेन मे है ये कैशल और लोग इसे Neushwanstein Castle कहते है.
winter मे ऐसा लगता है कि बादलो के बीच स्वर्ग मे बसा हुआ है ये कैशल.

10/19/07

वियेना से एक वादा था


११ कि सुबह हमारी train वियेना पहुंची .
वियेना कि गलियो से मै वाकिफ़ था. बिते दिसम्बर ,इसी शहर मे मैने कुछ शर्द दिन गुजारी थी. रेलवे स्टेशन से बाहर कि तरफ़ मैने झाकं कर देखा,वही नजारा था. मेरी नजरे वियेना कि सडको से कह रही थी : “मै आ गया. तुमसे मिलने.दुबारा.”


वियेना मे टमटम !
यही तो है वियेना कि खासियत .यूरोप मे कही कही ही आपको टमटम देखने को मिलेगा. रोम मे Rathaus के पास और वियेना मे stephensplatz और parliament के पास . ऐसे टमटम आज भी हमारे देश, इंडिया के गांवो मे चलते है.

यूपी –बिहार मे टमटम को ’एका’ कहा जाता है और छोटे रेलवे स्टेशन के बाहर अक्सर देखा जा सकता है.
कई गांव रेलवे स्टेशन से १५-२० किलोमिटर दूर होते है, जहा जाने के लिए एका के अलावा और कोई साधन नही होता है.
यूरोप के टमटम और हमारे गांव के एका मे फ़र्क इतना हि होत है कि यूरोप के टमटम चालक सूट-बूट मे होते है और हमारे यहा एका चलाने बाले, सूट-बूट तो दूर , दॊ वक्त कि रोटी के लिए तरसते है.

Austrian Parliament के आगे ठिक ४ बजे ये फ़ोटो लि हमने (zoom कर के देखिये, राजदीप के wrist watch मे time साफ़ दिख रहा है ) India मे उस समय ७:३० बज रहा होगा. तब मम्मी डिनर कि तैयारी करती होंगी और पापा फ़ोन पे किसी से बतियते होंगे .

यूरोप भ्रमण का विचार

एक दिन अचानक पता चला कि कुछ दिनो मे मेरा स्टे परमिट (permesso di sogourno) expire होने वाला है..
और renew करने मे ५-६ महिने लग जाएंगे.
जब तक नया स्टे परमिट नही आ जाता, ईटली से बाहर आप नही निकल सकते.
यूरोट्रिप मारने का पूरा प्लान धरा का धरा रह जाता अगर उस समय हम थोडी सी भी सुस्ती दिखाते तो..
जल्दी से यूरोप के बडे शहरो के बारे मे जानकारी प्राप्त किये और decide ये हुआ कि २ week मे पूरा यूरोप घुमना
है.. हर शहर मे सिर्फ़ एक दिन.
उदीने – वियेना- फ़ुसेन – मुनीख – बर्लिन- स्टाकहोम – ओसलो – कोपेनहैगन – एम्स्टरडैम – ब्रसेल्स – पेरिस – मार्साइल – बार्सिलोना – निस – उदीने

१० अगस्त कि रात जब हम और राजदीप उदीने से निकले थे तो मन मे एक शंका भी थी.
Non-stop trip का ये प्लान कितना सफ़ल होगा, इसका हमे अंदाजा नही था.
हमने सोच रखा था कि सफ़र के दौरान कही होटल या होस्टल मे रुकना नही है और यथासम्भव रात मे ही ट्रेन से सफ़र करना है .
रात के एक बजे, वियेना जाने वाली train उदीने स्टेशन पर आ गई और हम दोनो उत्साह के साथ सवार हुए.
Train चल पडी और हमने उदीने को अलविदा किया. हम दोनो उम्मीद और उत्साह से सरोबर थे.
राजदीप की आखें चमक रही थी.

6/16/07

विलाख - क्लैगन्फ़ुर्त

“जाना था कही और ..कही हम और निकल आए….”
अपना प्लान तो तारवीसीयो जाने का था.. लेकिन बस से तारवीसीयो का नज़ारा अच्छा नही लगा, हम बैठे रह गए और देखते ही देखते ईटली की सीमा पार कर आस्ट्रिया आ पहुंचे . बस से उतरने के बाद पता चला कि जिस शहर मे हम पहुंचे है, उसका नाम है
विलाख.
अपने साथी ,कैली से मैने कहा.. ’अब आ ही गए है तो चलो घुम लिया जाए’
कैली की आंखो मे दुविधा साफ़ झलक रही थी.. :P ..
विलाख रेल्वे स्टेशन से हमने पता किया कि विलाख से सबसे नजदीक बडा शहर क्लैगन्फ़ुर्त है. ’तकरीबन २ घंटे लगेंगे जाने मे…कैली भाई, चला जाए.. ’
’हे..हे…अब आ ही गए है तो ……. ’

आस्ट्रिया के रेल्वे स्टेशन बहुत ही खूबशुरत है.क्लैगन्फ़ुर्त का रेल्वे
स्टेशन किसी हवाई अड्डे से कम नही दिखता.अब आपके रेफ़रेन्श के लिए एक फ़ोटो लगाए देता हुं .. हे हे.. :D



जब हम क्लैगन्फ़ुर्त पहुंचे तब दिन ढल चुका था. बिल्ला सुपर मार्केट से हमने कुछ-कुछ खाया और फ़िर इधर-उधर टाईम पास किया.. ;)
थकावट जरा भी नही थी.. रात मे ही शहर को इक्स्प्लोर करने हम निकल पडे.
क्रिसमस का टाइम था, इसलिए थोडी-बहुत चहल-पहल थी.



रात मे हमने शहर का चक्कर लगाया.. कुछ अजीब से चीज़े देखी ..और चलते गए..पौ फटने तक हम चलते रहे… मीनी मुन्डुस पहुंचे तो पता चला कि वो बन्द है..



रास्ते मे एक मैदान दिखा था जिसमे शतरंज के बडे-बडे खाने बने हुए थे और एक किनारे मे बडे-बडे प्यादे भी रखे हुए थे. उन प्यादो को उठाने के लिए आपको अपना दोनो हाथ लगाना पड जाएगा.बगल मे दर्शको के बैठने के लिए सिढियां भी बनी हुई थीं. किसी जमाने मे शतरंज के खेल का लुत्फ़ उठाने लोग आते होंगे..
आज तो चेसबोर्ड और प्यादो पे काई कि एक परत जम गई है.
मेरे कैमरे मे बैट्री नही थी यार…सौरी..फ़ोटो नही ले पाए.
’कैली, बैट्री खत्म हो चुका है और शाम तक ’उदीने’ भी पहुचना है.. लौटा जाए.’
’ह्म्म्म्म…’

रविवार को आस्ट्रिया मे तकरीबन सारी दुकाने बंद होती है.
कितना कुछ था खरीदने के लिए .. बट  संडे था.. क्या करते..विन्डो सापिंग करके ही दिल को तसल्ली दिए..
दोपहर तक हम विलाख वापस आ गए थे..
और शाम सात बजे तक उदीने.
एक अफ़सोस रहेगा, विलाख और क्लैगन्फ़ुर्त के आधे से ज्यादा यादों को कैमरे मे कैद नही कर पाए…

PS : आस्ट्रिया मे कही भी अगर ऐसा कुछ दिखेगा -->



तो उसको हाथ नही लगाने का.. :P
और आस्ट्रिया जाए तो डोनर केबाब जरुर से खाए !