12/31/09

ढाका डायरी

प्यारे पाठको ,
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !

पिछले कुछ चंद सफ़र के बारे में ये घुमक्कड़ आपको अपडेट नहीं कर पाया , माफ़ कीजियेगा - दौड़ लगाना पड़ गया था

कलकत्ता छोड़े हुए महीने हो चुके है वहा की ट्राम , काठी रोल और आबो हवा की अब बहुत याद आती है . साल में कलकत्ता से बहुत अटैचमेंट हो गया वहा थे तो गलियाते थे - वहा की धीमी ज़िन्दगी , उमस भरी गर्मी और लोकल तौर तरीके को; अब जी करता है एक बार और जाए , गले लगा ले शहर को और पूछे - 'कोलकाता, की होछ्छे ? की खोबोर ? '

नवम्बर के पहले हफ्ते में बिजनेस के सिलसिले में ढाका जाने का मौका मिला कोलकाता से ढाका एक झपकी मारते ही आप पहुच जायेंगे साल्ट लेक से एअरपोर्ट जाने में जितना टाइम लगा , उससे भी कम टाइम में कोलकाता से ढाका पहुच गए।

ढाका एअरपोर्ट से बाहर निकलते ही ऐसा लगा जैसे पूरा ढाका खड़ा हो लोगो के भीड़ को चीरते हुए धीरे धीरे मेरी गाडी आगे बढ़ी और मैंने शुरु किया खिड़की से बाहर झाकना

ढाका में तक़रीबन साढ़े चार लाख रिक्सा रोज चलते है 'रिक्सा कैपिटल ऑफ़ वर्ल्ड ' के नाम से भी जाना जाता है ये शहर यहाँ की सबसे बड़ी समस्या यहाँ की ट्राफिक है ट्राफिक में घंटो फसे रहना आम बात है - घंटे अगर आप लेट से दफ्तर पहुचते है तो ये कोई नयी बात नहीं होगी। दिन के बिजनेस ट्रिप में ट्राफिक का प्रकोप हमारे ऊपर खूब बरसा एक बार बजे पिज्जा का आर्डर किया जो की :४५ में मिला पिज्जा हट और डोमिनोस के प्रोमिसेस यहाँ नहीं चलते ज़िन्दगी धीमी है और यहाँ के युवा देश से बाहर निकलना चाहते है। बंगलादेशी बदनाम है इल्लेगल इम्मिग्रेसन के लिए इस कलंक के कारण यहाँ के युवाओ को दुसरे देश का वीसा मिलने में भी काफी तकलीफ होती है

एक अमेरिकी के लिए ज़िन्दगी कितना आसान है और एक अफगानी , इराकी या बंगलादेशी के लिए कितना मुश्किल ? सरहदे गिरा देना और सभी को सामान अधिकार देना क्या एक उम्मीद नहीं ? कब जा कर हम कह सकेंगे की हम इस ग्रह में रहते है , इन देशो में नहीं ?