10/20/09

किन्डर स्तात्त इंदर (जर्मन )

करीब दस वर्ष पहले की बात है, जर्मन सरकार को एहसास हुआ की देश की प्रगति के लिए उन्हें बड़ी संख्या में साफ्टवेयर इंजीनियर की जरुरत होगी. यूरोप और अमरीका में अब साफ्टवेयर इंजीनियर और हिन्दुस्तानी लगभग एक दुसरे के पर्याय बन गए है. सबसे पहले तो जर्मन सरकार ने सोचा की हिन्दुस्तानियों को यहाँ लाना होगा।

दूसरा रास्ता : साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई में निवेश कर उच्च स्तरीय साफ्टवेयर इंजिनियर जर्मनी में ही तैयार किया जाए.असली समस्या बड़ी संख्या में साफ्टवेयर इंजिनियर तैयार करना था( 'बड़ी संख्या' पे ध्यान दीजियेगा)। अब देश में ज्यादा बच्चे होंगे तभी तो ज्यादा से ज्यादा बच्चे साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेंगे
अंत में पुरी समस्या को एक स्लोगन से रेप्रेसेन्ट किया गया : किन्डर स्तात्त इंदर ( बच्चे, नाकि भारतीय )

आपको क्या लगता है , आने वाले कल में भारतीय और चीनी लोगो की क्या भूमिका रहेगी पूरे विश्व में इंजीनियरों और एम-बी-ए के बढ़ते डिमांड के मद्देनज़र ? क्या विदेशी, भारतीय और चीनी मूल के 'स्किल्ड लेबर ' को अपनाएंगे?

0 comments: