प्यारे पाठको ,
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
पिछले कुछ चंद सफ़र के बारे में ये घुमक्कड़ आपको अपडेट नहीं कर पाया , माफ़ कीजियेगा - दौड़ लगाना पड़ गया था ।
कलकत्ता छोड़े हुए २ महीने हो चुके है । वहा की ट्राम , काठी रोल और आबो हवा की अब बहुत याद आती है । १.५ साल में कलकत्ता से बहुत अटैचमेंट हो गया । वहा थे तो गलियाते थे - वहा की धीमी ज़िन्दगी , उमस भरी गर्मी और लोकल तौर तरीके को; अब जी करता है एक बार और जाए , गले लगा ले शहर को और पूछे - 'कोलकाता, की होछ्छे ? की खोबोर ? '
नवम्बर के पहले हफ्ते में बिजनेस के सिलसिले में ढाका जाने का मौका मिला । कोलकाता से ढाका एक झपकी मारते ही आप पहुच जायेंगे । साल्ट लेक से एअरपोर्ट जाने में जितना टाइम लगा , उससे भी कम टाइम में कोलकाता से ढाका पहुच गए।
ढाका एअरपोर्ट से बाहर निकलते ही ऐसा लगा जैसे पूरा ढाका खड़ा हो । लोगो के भीड़ को चीरते हुए धीरे धीरे मेरी गाडी आगे बढ़ी और मैंने शुरु किया खिड़की से बाहर झाकना ।
ढाका में तक़रीबन साढ़े चार लाख रिक्सा रोज चलते है । 'रिक्सा कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड ' के नाम से भी जाना जाता है ये शहर । यहाँ की सबसे बड़ी समस्या यहाँ की ट्राफिक है । ट्राफिक में घंटो फसे रहना आम बात है । १-२ घंटे अगर आप लेट से दफ्तर पहुचते है तो ये कोई नयी बात नहीं होगी। ५ दिन के बिजनेस ट्रिप में ट्राफिक का प्रकोप हमारे ऊपर खूब बरसा । एक बार १ बजे पिज्जा का आर्डर किया जो की २:४५ में मिला । पिज्जा हट और डोमिनोस के प्रोमिसेस यहाँ नहीं चलते । ज़िन्दगी धीमी है और यहाँ के युवा देश से बाहर निकलना चाहते है। बंगलादेशी बदनाम है इल्लेगल इम्मिग्रेसन के लिए । इस कलंक के कारण यहाँ के युवाओ को दुसरे देश का वीसा मिलने में भी काफी तकलीफ होती है ।
एक अमेरिकी के लिए ज़िन्दगी कितना आसान है और एक अफगानी , इराकी या बंगलादेशी के लिए कितना मुश्किल ? सरहदे गिरा देना और सभी को सामान अधिकार देना क्या एक उम्मीद नहीं ? कब जा कर हम कह सकेंगे की हम इस ग्रह में रहते है , इन देशो में नहीं ?
12/31/09
10/20/09
किन्डर स्तात्त इंदर (जर्मन )
करीब दस वर्ष पहले की बात है, जर्मन सरकार को एहसास हुआ की देश की प्रगति के लिए उन्हें बड़ी संख्या में साफ्टवेयर इंजीनियर की जरुरत होगी. यूरोप और अमरीका में अब साफ्टवेयर इंजीनियर और हिन्दुस्तानी लगभग एक दुसरे के पर्याय बन गए है. सबसे पहले तो जर्मन सरकार ने सोचा की हिन्दुस्तानियों को यहाँ लाना होगा।
दूसरा रास्ता : साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई में निवेश कर उच्च स्तरीय साफ्टवेयर इंजिनियर जर्मनी में ही तैयार किया जाए.असली समस्या बड़ी संख्या में साफ्टवेयर इंजिनियर तैयार करना था( 'बड़ी संख्या' पे ध्यान दीजियेगा)। अब देश में ज्यादा बच्चे होंगे तभी तो ज्यादा से ज्यादा बच्चे साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेंगे
अंत में पुरी समस्या को एक स्लोगन से रेप्रेसेन्ट किया गया : किन्डर स्तात्त इंदर ( बच्चे, नाकि भारतीय )
आपको क्या लगता है , आने वाले कल में भारतीय और चीनी लोगो की क्या भूमिका रहेगी पूरे विश्व में इंजीनियरों और एम-बी-ए के बढ़ते डिमांड के मद्देनज़र ? क्या विदेशी, भारतीय और चीनी मूल के 'स्किल्ड लेबर ' को अपनाएंगे?
दूसरा रास्ता : साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई में निवेश कर उच्च स्तरीय साफ्टवेयर इंजिनियर जर्मनी में ही तैयार किया जाए.असली समस्या बड़ी संख्या में साफ्टवेयर इंजिनियर तैयार करना था( 'बड़ी संख्या' पे ध्यान दीजियेगा)। अब देश में ज्यादा बच्चे होंगे तभी तो ज्यादा से ज्यादा बच्चे साफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेंगे
अंत में पुरी समस्या को एक स्लोगन से रेप्रेसेन्ट किया गया : किन्डर स्तात्त इंदर ( बच्चे, नाकि भारतीय )
आपको क्या लगता है , आने वाले कल में भारतीय और चीनी लोगो की क्या भूमिका रहेगी पूरे विश्व में इंजीनियरों और एम-बी-ए के बढ़ते डिमांड के मद्देनज़र ? क्या विदेशी, भारतीय और चीनी मूल के 'स्किल्ड लेबर ' को अपनाएंगे?
10/2/09
तोर्तिल्ला स्पैन्योला
9/13/09
वन नाईट @ रैन बसेरा
एक बार एक घुमक्कड़ यूरोपी पटना पंहुचे । अक्सर सैलानी गया और नालंदा जाने के लिए, पटना को 'गेटवे' की तरह इस्तेमाल करते है और देश विदेश से आने वाले सैलानी पटना में एक रात गुजार कर अगली सुबह गया या नालंदा के लिए अपनी यात्रा प्रारम्भ करना बेहतर समझते है ।
हमारे घुमक्कड़ यूरोपी, पूरे यूरोप , पश्चिमी और मध्य एशिया अपने कार से सफर करने के बाद भारत पधारे थे ।
भारत के सडको पे कार चलाना मुश्किल था उनके लिए , इसलिए कार को दिल्ली के एक गराज में रख , बस और रेल से भारत भ्रमण करने का उन्होंने निर्णय लिया था ।
शाम का वक्त था। पटना स्टेशन से बाहर निकलने के बाद हमारे घुमक्कड़ साहब कही टेंट लगाने की जगह ढूँढना शुरू किए । पटना में तो टेंट सिर्फ़ नीम हकीम लगाते है और वो भी दोपहर के वक्त गांधी मैदान में। कोई विदेशी अगर तम्बू गाड़ने की कोशिश करे तो जमघट लगने में २ मिनट का समय भी नही लगेगा।
लोगो की हरकतों से हमारे घुमक्कड़ साहब को समझ में आ गया था की यहाँ टेंट नही लगाई जा सकती और रात बिताने के लिए होटल जाना भी हमारे घुमक्कड़ साहब को गवारा था नही । अब सोए तो कहा सोए ? रेलवे स्टेशन के सारे प्लात्फोर्म भी हॉउस फुल थे । टौवाते रहे २-३ घंटा इधर- उधर ।
इत्तफाक से एक रिक्शे वाले की नज़र इनपे पड़ गई। रिक्शे वाले को समझ में आ गया था की जनाब को क्या चाहिए। इशारे - इशारे में सौदा पक्का हुआ । रैन बसेरा में एक रात गुजारने के लिए ४० रुपये ।
दिन भर के थके हमारे घुमक्कड़ साहब अपना स्लीपिंग बैग निकाले और सो गए रैन बसेरा में। हमारे घुमक्कड़ साहब तो घोडे बेच कर सो गए और इधर रातो रात पूरे शहर में हल्ला हो गया की एक विदेशी रिक्शे वालो के बिच रैन बसेरा में सो रहा है । कोई विदेशी लाचार होकर तो रैन बसेरा में सोयेगा नही , हो न हो ये इश्वर के अवतार है ।
गरीबो के मसीहा है ।
सुबह जब घुमक्कड़ साहब की नींद खुली, तो देखते है की सभी रिक्शे वाले उन्हें दंडवत प्रणाम कर रहे है। पूरे विश्व में श्रद्धा की एक ही भाषा होती है और पूरे विश्व में श्रद्धा और पागलपन के बिच की लकीर भी काफ़ी पतली होती है। रिक्शे वाले शायद हमारे घुमक्कड़ साहब को अवतार घोषित कर दिए थे । घबराए हुए से घुमक्कड़ साहब जल्दी -जल्दी अपना बोरिया बिस्तार समेटे और निकल लिए वहा से। डरे हुए से घुमक्कड़ साहब को शायद याद आ गया होगा की यहाँ भारत में बकरे को हलाल करने से पहले उसकी आरती उतारी जाती है।
हमारे घुमक्कड़ यूरोपी, पूरे यूरोप , पश्चिमी और मध्य एशिया अपने कार से सफर करने के बाद भारत पधारे थे ।
भारत के सडको पे कार चलाना मुश्किल था उनके लिए , इसलिए कार को दिल्ली के एक गराज में रख , बस और रेल से भारत भ्रमण करने का उन्होंने निर्णय लिया था ।
शाम का वक्त था। पटना स्टेशन से बाहर निकलने के बाद हमारे घुमक्कड़ साहब कही टेंट लगाने की जगह ढूँढना शुरू किए । पटना में तो टेंट सिर्फ़ नीम हकीम लगाते है और वो भी दोपहर के वक्त गांधी मैदान में। कोई विदेशी अगर तम्बू गाड़ने की कोशिश करे तो जमघट लगने में २ मिनट का समय भी नही लगेगा।
लोगो की हरकतों से हमारे घुमक्कड़ साहब को समझ में आ गया था की यहाँ टेंट नही लगाई जा सकती और रात बिताने के लिए होटल जाना भी हमारे घुमक्कड़ साहब को गवारा था नही । अब सोए तो कहा सोए ? रेलवे स्टेशन के सारे प्लात्फोर्म भी हॉउस फुल थे । टौवाते रहे २-३ घंटा इधर- उधर ।
इत्तफाक से एक रिक्शे वाले की नज़र इनपे पड़ गई। रिक्शे वाले को समझ में आ गया था की जनाब को क्या चाहिए। इशारे - इशारे में सौदा पक्का हुआ । रैन बसेरा में एक रात गुजारने के लिए ४० रुपये ।
दिन भर के थके हमारे घुमक्कड़ साहब अपना स्लीपिंग बैग निकाले और सो गए रैन बसेरा में। हमारे घुमक्कड़ साहब तो घोडे बेच कर सो गए और इधर रातो रात पूरे शहर में हल्ला हो गया की एक विदेशी रिक्शे वालो के बिच रैन बसेरा में सो रहा है । कोई विदेशी लाचार होकर तो रैन बसेरा में सोयेगा नही , हो न हो ये इश्वर के अवतार है ।
गरीबो के मसीहा है ।
सुबह जब घुमक्कड़ साहब की नींद खुली, तो देखते है की सभी रिक्शे वाले उन्हें दंडवत प्रणाम कर रहे है। पूरे विश्व में श्रद्धा की एक ही भाषा होती है और पूरे विश्व में श्रद्धा और पागलपन के बिच की लकीर भी काफ़ी पतली होती है। रिक्शे वाले शायद हमारे घुमक्कड़ साहब को अवतार घोषित कर दिए थे । घबराए हुए से घुमक्कड़ साहब जल्दी -जल्दी अपना बोरिया बिस्तार समेटे और निकल लिए वहा से। डरे हुए से घुमक्कड़ साहब को शायद याद आ गया होगा की यहाँ भारत में बकरे को हलाल करने से पहले उसकी आरती उतारी जाती है।
8/17/09
भुने हुए टिड्डे (Grasshopper)
थोडी सी चखने की इक्षा मैंने जाहिर की और टिड्डे वाले ने मुझे दो टिड्डे दिए। मेरे साथी, सौम्या और सिम्पू फोटोकैमेरा ले तैनात होकर बोले "तू खा मै फोटो लेता हूँ"
मैंने आखें बंद की और ३..२..१..भुने हुए टिड्डे को चबाना शुरू किया।
बेहद कुरकुरे और स्वादिष्ट!! पर चबा करके टिड्डे को निगल नहीं पाया । गन्ने के तरह स्वाद ले करके थूकना पड़ा ।
टिड्डे और कीडेमकौडो में काफी प्रोटीन होता है और फैट बहुत ही कम , तभी तो उनकी strength/weight ratio काफी ज्यादा होती है और इतनी तेजी से उड़ पाते है ।
टिड्डे के अलावा, झींगुर, भौरा और बिच्छू भी लोग खाते है, सोया सॉस के साथ.
आपको अगर मौका मिले तो जरूर ट्राई कीजियेगा, और याद रहे टिड्डे और झींगुर के पैर तोड़ के खायीयेगा वरना गले में अटकेंगे !!
7/27/09
ओ माझी रे
7/18/09
मिशन - १ सफर, ६ महादेश और ४७ आश्चर्य

मिशन की तैयारी में पहला कदम १६ जुलाई २००९ को उठाया । एक सादे मैप में आश्चर्यो को चिन्हित कर दिया ।
तक़रीबन आधे घंटे लगे इस काम में। सफर करने में शायद एक साल लग जाए।
जनवरी २०१२ में ये सफर की शुरुआत करने की सोची है ।
आज मेरी मिटींग साइमन मोरेल्ली से है । साइमन पिछले ७ वर्षो से घूम रहा है और तक़रीबन आधी दुनिया की सैर कर चुका है । अभी उसका एस.एम.एस आया की आज शाम वो साल्ट लेक पहुँच रहा है। साइमन के अनुभव जानने के लिए उत्सुक हु । ७ साल !!! मजाक नही है!
मिशन के दौरान हर एक दिन दुसरे दिन से कितना अलग होगा । हर दिन सुबह उठो और ख़ुद को एक नए जगह पाओ । सोचो , अपने सारे जायदाद को त्याग कर सिर्फ़ चलते जाना , एक शहर से दुसरे शहर; एक देश से दुसरे देश, कैसा होगा ?
मिशन शुरू होने में अभी २ साल बाकी है और इस बीच एक लंबा सफर भी तय करना है । मिशन के तैयारी , मिशन से कम मुश्किल नही होगी।
7/15/09
बिना वीसा मलेशिया की धरती पे
ये जो रेल की पटरी आप देख रहे है , ये है तो सिंगापूर में पर अमानत है मलेशिया की।
सिंगापूर के उत्तरी पश्चमी इलाके से गुजरती मलेशियन ट्रेन का सिंगापूर में पहला चेकपोस्ट बार्डर के काफ़ी अन्दर है।
मेरे ३ दिन के सिंगापूर यात्रा में मेरी दोस्त एरी ने मुझे ऐसी बहुत सारी बातें बतायी जो की दुसरे मुसाफिरों को नही पता होगी ;)
शुक्रिया एरी, सिंघपुरा से मुझे वाकिफ कराने के लिए ।
7/10/09
7/9/09
7/7/09
चिठ्ठी आई है!
7/2/09
6/30/09
सैम, काया और काले मेघा
अरसे बाद ३० जून को कोलकत्ता में बारिश हुयी. चलो,गर्मी से कुछ तो निजाद मिला. हालत ख़राब हो रही थी हम सभी की यहाँ. फेसबुक, ट्वीटर, ऑरकुट, हर जगह कलकत्ता वासी "काले मेघा, काले मेघा, पानी तो बरसाओ" गाते दिख जा रहे थे.
मानसून की पहली बारिश में घुमने का कुछ आनंद होता है. एकदम गोडली. ऑफिस से निकलते समय ज़ोर की बारिश हो रही थी. मैंने मोबाइल को लैपटॉप बैग में रखा और भीगने के लिए ख़ुद को तैयार कर लिया. तभी सैम का फ़ोन आया : "Saurav, we have arrived at your home"
सैम ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला है और अपनी चाइनीज गर्लफ्रेंड काया के साथ वर्ल्ड टूर पे निकला हुआ है.अनंतकालीन वर्ल्ड टूर.किस शहर में कब जाना है, और कब तक घूमते रहना है ये सोच के वो दोनों घर से नही निकले है. जलन होती है ऐसे लोगो से मिल के. कसम से.
भीगते हुए घर पंहुचा तो देखा छोटे बच्चे दोनों को घेर रखे है और Hi, Hello, नमस्ते चल रहा है.
Sam, welcome to India! सैम और काया भी भीग चुके थे. घर पहुंचकर हमलोगों ने कपड़े बदले और निकल पड़े evening walk पर.
काया की ये पहली इंडिया ट्रिप थी सो वो excited थी सब कुछ देख कर .इंडिया के बारे में वो ज्यादा कुछ पता नही की आने से पहले, वो इंडिया के बारे में ख़ुद अपनी धारणा बनाना चाहती थी.इंडिया को ख़ुद अनुभव करके. लोगो की बात सुन और पढ़कर ये काम मुश्किल हो जाता है. ऐसे, घुमने के बाद ही हमे पता चलता है की बहुत सारी बातें जो हम दुसरे देशो के बारे में सुनते है, वो ग़लत होती है.
सैम और काया मेरे लिए थाई मिठाई लाये थे. कोकोनट और चावल की बनी थाई मिठाई, दिखने में जापानी सुशी जैसी और खाने में अपनी कोकोनट बर्फी जैसी. हमारे देश में इतने तरह की मिठाईया बनती हैं की दुनिया के किसी भी देश की कोई सी भी मिठाई का स्वाद नया नही लगता हमको.
चलते चलते हमलोग एक मिठाई की दूकान पहुंचे और कचौडी और रोसोगुल्ला खाए. साम और काया के लिए रोसोगुल्ला बहुत मीठा था, मुश्किल हुई उन्हें खाने में.
खा पी कर फ़िर निकल पड़े सैर पे. साल्टलेक सिटी के एक ब्लाक से दुसरे ब्लाक, बातें करते हुए.
हम घुमक्कड़ के पास कभी कहने, सुनने के लिए चीजो की कमी नही होती. पेट अगर भरा हुआ हो तो बातें करते ही चले जाते है.
अगले २ घंटे तक हम बातें करते हुए घूमते रहे और हल्की हल्की बारिश होती रही. मौसम का अनुमान है की कलकत्ता में तक़रीबन एक हफ्ते तक काले मेघा छाए रहेंगे.
जय हो!
मानसून की पहली बारिश में घुमने का कुछ आनंद होता है. एकदम गोडली. ऑफिस से निकलते समय ज़ोर की बारिश हो रही थी. मैंने मोबाइल को लैपटॉप बैग में रखा और भीगने के लिए ख़ुद को तैयार कर लिया. तभी सैम का फ़ोन आया : "Saurav, we have arrived at your home"
सैम ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला है और अपनी चाइनीज गर्लफ्रेंड काया के साथ वर्ल्ड टूर पे निकला हुआ है.अनंतकालीन वर्ल्ड टूर.किस शहर में कब जाना है, और कब तक घूमते रहना है ये सोच के वो दोनों घर से नही निकले है. जलन होती है ऐसे लोगो से मिल के. कसम से.
भीगते हुए घर पंहुचा तो देखा छोटे बच्चे दोनों को घेर रखे है और Hi, Hello, नमस्ते चल रहा है.
Sam, welcome to India! सैम और काया भी भीग चुके थे. घर पहुंचकर हमलोगों ने कपड़े बदले और निकल पड़े evening walk पर.
काया की ये पहली इंडिया ट्रिप थी सो वो excited थी सब कुछ देख कर .इंडिया के बारे में वो ज्यादा कुछ पता नही की आने से पहले, वो इंडिया के बारे में ख़ुद अपनी धारणा बनाना चाहती थी.इंडिया को ख़ुद अनुभव करके. लोगो की बात सुन और पढ़कर ये काम मुश्किल हो जाता है. ऐसे, घुमने के बाद ही हमे पता चलता है की बहुत सारी बातें जो हम दुसरे देशो के बारे में सुनते है, वो ग़लत होती है.
सैम और काया मेरे लिए थाई मिठाई लाये थे. कोकोनट और चावल की बनी थाई मिठाई, दिखने में जापानी सुशी जैसी और खाने में अपनी कोकोनट बर्फी जैसी. हमारे देश में इतने तरह की मिठाईया बनती हैं की दुनिया के किसी भी देश की कोई सी भी मिठाई का स्वाद नया नही लगता हमको.
चलते चलते हमलोग एक मिठाई की दूकान पहुंचे और कचौडी और रोसोगुल्ला खाए. साम और काया के लिए रोसोगुल्ला बहुत मीठा था, मुश्किल हुई उन्हें खाने में.
खा पी कर फ़िर निकल पड़े सैर पे. साल्टलेक सिटी के एक ब्लाक से दुसरे ब्लाक, बातें करते हुए.
हम घुमक्कड़ के पास कभी कहने, सुनने के लिए चीजो की कमी नही होती. पेट अगर भरा हुआ हो तो बातें करते ही चले जाते है.
अगले २ घंटे तक हम बातें करते हुए घूमते रहे और हल्की हल्की बारिश होती रही. मौसम का अनुमान है की कलकत्ता में तक़रीबन एक हफ्ते तक काले मेघा छाए रहेंगे.
जय हो!
6/18/09
मेहमान आ रहे है!
२१ जून को सिंगापूर के ३ मुसाफिर , मेरे यहाँ पधार रहे है!
ये भी क्या सही इत्तेफाक है , जुलाई में मै सिंगापूर जा रहा हू और जून में ख़ुद सिंगापूर ही चल के मेरे पास आ गया :)
इलैने हो (Elaine Ho) अपने दो दोस्तों के साथ , दार्जिलिंग और वाराणसी का सफर तय करने के बाद, कुछ दिनों के लिए कोलकत्ता आ रही है। पेशे से इलैने टीचर है और लगभग आधी दुनिया घूम चुकी है। :)
ये भी क्या सही इत्तेफाक है , जुलाई में मै सिंगापूर जा रहा हू और जून में ख़ुद सिंगापूर ही चल के मेरे पास आ गया :)
इलैने हो (Elaine Ho) अपने दो दोस्तों के साथ , दार्जिलिंग और वाराणसी का सफर तय करने के बाद, कुछ दिनों के लिए कोलकत्ता आ रही है। पेशे से इलैने टीचर है और लगभग आधी दुनिया घूम चुकी है। :)
5/29/09
घर आजा परदेसी तेरा देश बुलाए रे
कौन सा गाना आपको घर की सबसे ज्यादा याद दिलाता है ?
जिसको सुनते ही आपकी आखों के सामने एक दृश्य उभर आता है? और कौन सा गाना
आपको घुमने के लिए प्रेरित करता है??
अपनी पसंद इस चिट्ठे के कमेन्ट में लिखिए और साथ ही अपने घर का पता
भी..क्योकि सबसे अच्छी इंट्री को मिलने वाला है 'एक
घुमक्कड़' की तरफ़ से एक ट्रेवल पोस्टकार्ड ;)
मेरी पसंद: घर आजा परदेसी तेरा देश बुलाए रे (दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे)।
खासकर ये चार लाइन :
"आज ही आजा गाता हँसता
तेरा रस्ता देखे रस्ता
अरे छुक छुक गाड़ी की सीटी आवाज़ लगाये रे
घर आजा परदेसी तेरा देश बुलाए रे "
3/13/09
ये पटना है मेरे यार
सोच क्या रहे है जनाब , फिल इन द ब्लैंक और शामिल हो जाईये कांटेस्ट में .
सर्वश्रेष्ठ सुझाव देने वाले को मिलेगा एक घुमक्कड़ की तरफ़ से पटना जाने का रेल टिकट, बिल्कुल मुफ्त!!!!
3/9/09
अ वाक डाउन द मेमोरी लेन
' साल गुजरता
मै भी बढ़ता,
सत्रह का हो जाउंगा।
कहा कौन सा
काम करूँगा,
क्या धंधा अपनाऊंगा ?'
भैया ने बातो बातो में बचपन की याद ताजा करा दी।
लींगलींग, नजानु और छोटे इवान की कहानिया मस्तिस्क में अब एक धुंधली तस्वीर की तरह है।
कुछ चेहरे याद है, कुछ वक्त की ओंस में खो गए।
इतना याद है की रूसी कहानियों में लोग पौ फटते ही काम पर निकल जाते थे और लींगलींग जब जोर जोर से दरवाजे पर दस्तक देता तो दरवाजा नही खोला जाता पर जब प्यार से खटखटाता तब उसकी दादी अम्मा दरवाजा खोल देती।
जी करता है सारे करेक्टर्स को खोजू , सारी कहानिया फ़िर से पढ़ डालू।
कल घर जा रहा हू , पापा की लाइब्रेरी में लींगलींग और नजानु को खोजने।
यादो को हम संजो कर रखते है। शायद इसलिए क्योकी वक़्त के साथ हम सभी बदल जाते है, पर यादे नही.
मै भी बढ़ता,
सत्रह का हो जाउंगा।
कहा कौन सा
काम करूँगा,
क्या धंधा अपनाऊंगा ?'
भैया ने बातो बातो में बचपन की याद ताजा करा दी।
लींगलींग, नजानु और छोटे इवान की कहानिया मस्तिस्क में अब एक धुंधली तस्वीर की तरह है।
कुछ चेहरे याद है, कुछ वक्त की ओंस में खो गए।
इतना याद है की रूसी कहानियों में लोग पौ फटते ही काम पर निकल जाते थे और लींगलींग जब जोर जोर से दरवाजे पर दस्तक देता तो दरवाजा नही खोला जाता पर जब प्यार से खटखटाता तब उसकी दादी अम्मा दरवाजा खोल देती।
जी करता है सारे करेक्टर्स को खोजू , सारी कहानिया फ़िर से पढ़ डालू।
कल घर जा रहा हू , पापा की लाइब्रेरी में लींगलींग और नजानु को खोजने।
यादो को हम संजो कर रखते है। शायद इसलिए क्योकी वक़्त के साथ हम सभी बदल जाते है, पर यादे नही.
3/4/09
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